कौन है वो–५
कौन है वो – ५
गतांक से आगे:
कुछ दिनों बाद एक अच्छा रिश्ता मालती के लिए लखनऊ से आया। लड़का अच्छी सरकारी नौकरी में कार्यरत था, परिवार भी बहुत छोटा और बहुत शालीन था।
रामेश्वर और सोमेश जा कर लड़के और परिवार से मिल आए और उनको रिश्ता बहुत पसंद आया। सबसे अच्छी बात थी की दान दहेज की भी बहुत ज्यादा मांग नहीं थी।
रमेश यानी लड़के के पिता स्वयं सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके थे और रमेश से एक साल छोटी उसकी बहन का विवाह भी कुछ समय पहले ही हो चुका था।
रमेश की माता जी बहुत धार्मिक विचारों वाली महिला थी और उन्हें अपने सुपुत्र के लिए सीधी सादी सुंदर सुघड़ घरेलू लड़की ही चाहिए थी जो गृह कार्य में दक्ष हो, और जो आकर घर गृहस्थी का भार संभाले, ताकि वो अपना समय भगवत भक्ति में गुजार कर अपना इहलोक और परलोक संवार सकें।
रमेश भी बहुत अधिक महत्त्वाकांक्षी नहीं था, उसे भी अपने माता पिता की तरह ही सीधी सादी लड़की को जीवन संगिनी बनाने का विचार था।
तय हुआ कि कुछ ही दिनों में लड़के वाले लड़की को देख कर रिश्ता पक्का कर देंगे।
रामेश्वर के मन में बस ये ही खटका था कि कहीं मालती का रंग और रूप इस रिश्ते के आड़े ना आ जाए। पर फिर भी वो इस रिश्ते को लेकर काफी आशान्वित था।
घर आ कर उसने सारी बातें सब घर के सदस्यों को बताई और साथ ही ये भी कि वो चाहता है की मालती का रिश्ता रमेश के साथ पक्का हो जाए। जन्म पत्रिका के हिसाब से भी वर वधु के ३६ गुण मिल चुके थे, अब तो उसे पूरा यकीन था मालती का रिश्ता इसी घर में हो जायेगा।
इधर गायत्री देवी भी इस रिश्ते को पक्का करने का इरादा मजबूत कर चुकी थी, वो चाहती थी जैसे भी हो मालती शादी होकर इस घर से जाए तो शायद उनके भी दिन फिरे। इस बार उन्होंने मन में ठान रखी थी, कुछ भी हो जाए मालती के रंग रूप की वजह से ये रिश्ता हाथ से नहीं जाना चाहिए।
बेचारी मालती उसकी पसंद नापसंद का तो किसी को कोई ख्याल ही नही था, वो तो मानो खूंटे से बंधी बछिया थी जिसकी रस्सी जिस किसी को सौंप दी जाए वो ही उसका मालिक हो जाता है।
किसी ने उससे पूछना भी उचित नहीं समझा की क्या उसे ये रिश्ता पसंद भी है या नहीं।
यहां तक उसकी दादी ने सख्त हिदायत कर दी की उसको इस मामले में बोलने का कोई अधिकार ही नहीं है। इतने घरों के रिश्ते उसे ठुकरा कर चले गए हैं और कब तक वो यहां पड़ी रहेगी, अब जिस भी लड़के से उसका रिश्ता होगा उसे चुपचाप मंडप में बैठ जाना होगा।
२१ वर्षीय मालती के दिल में शायद शादी विवाह को लेकर कोई सपना बचा ही नहीं था। उसे तो हरदम ये ही खौफ सताता रहता अगर कोई लड़का उसे नापसंद कर के चला गया तो ना जाने कितने दिनों तक दादी के ताने उलाहने और सारे परिवार का तिरिस्कार उसे सहन करना पड़ेगा।
अब तो वो भी रात दिन यही मनाती जैसे भी हो उसका विवाह हो ही जाए, तो शायद सबको सुकून मिले।
इसलिए वो चुपचाप सर झुका कर सबकी बात सुनती और जैसा उसे करने को कहा जाता मान लेती।
अगले ही हफ्ते रमेश के घर से इत्तला आ गई की वो लोग लड़की को देखने आ रहे हैं।
ये खबर सुन कर गायत्री देवी ने पूरे परिवार को एकत्र किया और अपनी योजना सबको विस्तार से समझा दी।
योजना सुनते ही रामेश्वर भड़क गया, पर गायत्री देवी ने उसको समझा बुझा कर, रो कर, मालती और सुधा का वास्ता देकर ये कहते हुए मना ही लिया, कि अरे एक बार फेरे हो गए और लड़की उनके घर चली गई फिर सब उसे स्वीकार कर ही लेंगे। फिर मालती घर के काम में इतनी कुशल है वो जल्दी ही सबका मन मोह लेगी।
वैसे भी रामेश्वर भी चाहता था की अब कैसे भी मालती का रिश्ता हो ही जाए, इसलिए उसने भी अनमने से मन से हां कर ही दी।
बेचारी मालती वो तो सकते में ही आ गई सुनकर, पर उसे पता था आज उसकी बात सुनने वाला कोई भी नहीं है, इसलिए वो सर झुकाए, सब की हां में हां मिलाती चली गई।
आखिर लड़के वाले नियत दिन रामेश्वर के द्वार पर आ ही पहुंचे। रमेश, रमेश के पिता और माता जी लड़की को देखने आए थे। रामेश्वर का पूरा परिवार जोर शोर से उनके स्वागत में जुट गया। घर में तरह तरह के व्यंजन और पकवान बनाए गए थे। बाजार से कई तरह की मिठाई लाई गई थी। बार बार मनुहार करके व्यंजन परोसे जा रहे थे। गायत्री देवी हर पकवान परोसते हुए मालती की पाककला की भूरि भूरि तारीफ करने से नहीं चूक रही थी, साथ ही उसकी बुनाई कढ़ाई और उसके मधुर स्वभाव की बात करने से नहीं चूक रही थी।
पूछे जाने पर की जिसको देखने आए हैं वो कहां है, गायत्री देवी बोली बड़ी मुश्किल से राजी कर के तयार होने भेजा है, वरना उसको तो सादा रहना ही पसंद है।
अब तो शाम होने लगी थी, और मेहमानों की खूब खातिरदारी भी हो चुकी थी, रमेश की माता जी ने एक और बार, संकोच के साथ, गायत्री देवी से पूछा, आपकी पोती को बुलवाइए, अब तो हमारे जाने का समय हो चला है।
गायत्री देवी ने तुरंत सोमेश को इशारा किया, बेटा जाओ देखो मालती अब तक क्यों नही आई।
कुछ ही देर में सुंदर साड़ी में लिपटी मालती को लेकर सोमेश वापस आ गया। मालती ने साड़ी के पल्लू से सर ढक रखा था और उसका आधा चेहरा घूंघट के पीछे छुपा था।
मालती ने आते ही रमेश की माताजी और पिताजी के पैर छुए और अपनी दादी के पास आकर बैठ गई। घूंघट की आड़ से भी उसका चेहरा दमक रहा था और उस का रूप निखर रहा था।
अचानक घर की बत्ती गुल हो गई और चारों तरफ अंधकार छा गया। तुरंत लैंप का इंतजाम किया गया, रमेश की मां के अनुरोध पर मालती ने थोड़ा घूंघट और ऊपर उठाया, रमेश जो पहले ही मालती के हाथों से बने स्वादिष्ट पकवान खा कर तृप्त हो चुका था, मालती के रूप लावण्य पर मुग्ध हो गया।
उसने अपनी माताजी की तरफ देखकर स्वीकृति में सर हिला दिया और उसकी माताजी ने आगे बढ़ कर मालती के सर पर हाथ रख कर रिश्ते को अपनी मंजूरी भी दे दी।
फिर एक सादे समारोह में दोनो पक्षों द्वारा वर वधु की रोके की रसम भी पूरी कर दी गई।
इस तरह आखिरकार हमारी नायिका के जीवन में एक नया अध्याय जुड़ गया।
जाने से पूर्व दोनो पक्षों की सहमति से सगाई और शादी की तारीख भी पक्की कर दी गई। तय हुआ की शीघ्र ही शादी करवा दी जाए ताकि मालती अपना घर संभाल सके।
शादी के लिए सर्वसम्मति से एक महीने बाद की तिथि घोषित कर दी गई।
जैसा कि पहले ही तय हो चुका था रमेश के परिवार की तरफ से किसी भी तरह की शर्त या मांग नहीं रखी गई। रमेश के माता पिता दोनो ही दहेज के लेन देन के विरोधी थे।
ये सब बातें तय करके रमेश और उसके माता पिता वापस लौट गए।
उनके जाने के बाद गायत्री देवी विजयी मुस्कान बिखेरते हुए अपनी सूझबूझ को दाद देते नहीं अघा रही थी।
आखिर ये उन्ही की सोच का नतीजा था की बदनसीब मालती का रिश्ता तय हो ही गया।
शीघ्र ही वो दिन भी आ पहुंचा जब रामेश्वर के द्वार पर गाजे बाजे के साथ मालती की बारात आ पहुंची।
शादी के दौरान मालती लंबा घूंघट निकाल कर सारी रस्में पूरी करती चली गई और अगली सुबह रमेश अपनी दुल्हन को लेकर मुस्कुराता हुआ लखनऊ की तरफ चल दिया।
शाम तक बारात वापस लखनऊ पहुंच गई जहां पूरा परिवार घर की नई बहू का स्वागत करने में जुट गया।
आस पड़ोस की महिलाएं मंगल गीत गा रहीं थी।
देर रात तक नई बहू के स्वागत में कार्यक्रम चलते रहे और फिर मालती को उसके शयनकक्ष में पहुंचा दिया गया।
उसकी सुहाग सेज सजी हुई थी जिस पर बिठा कर रमेश की भाभियां उसके साथ हंसी ठिठोली करने लगी।
रात करीब १२ बजे रमेश मुश्किल से अपने दोस्तों से छूट कर अपने कक्ष के द्वार पर आ पहुंचा जहां उसकी बहन अपनी सहेलियों के साथ द्वार रोक खड़ी थी, बहुत मनुहार के बाद और जेब खाली करवा कर ही सबने उसे अंदर आने का रास्ता दिया, जहां मालती सुहागसेज पर सिमटी सकुचाई सी बैठी थी।
रमेश ने सबसे पहले शयन कक्ष का दरवाजा बंद किया और धीमे कदमों से मालती की ओर कदम बढ़ाया।
मालती का हृदय बहुत जोर से धड़क रहा था, फिर भी उसने आगे बढ़ कर रमेश की चरण धूलि अपने माथे पर लगाई और फिर सेज के एक कोने में सिमट कर बैठ गई।
रमेश ने मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा और बोला, सुनो अब तो अपना घूंघट उठा दो,हमको अपने चांद को देखना है।
मालती ने धीरे से अपना सर हिला दिया।
अच्छा तो मुझे ही तुम्हारा घूंघट हटाना पड़ेगा, रमेश ने आगे बढ़ते हुए कहा।
मालती कुछ नहीं बोली, उसका दिल बहुत जोरों से धड़क रहा था।
रमेश ने पलंग के किनारे बैठते हुए, होले से मालती का घूंघट पलट दिया।
मालती का चेहरा देखते ही उसके चेहरे के कोमल भाव अचानक कठोर हो गए।
कौन हो तुम, उसने गुस्से से पूछा।
जी.... जी....... मैं मालती, आपकी पत्नी... मालती लड़खड़ाती जुबान में बोली।
नहीं... वो गुस्से से तमतमा के बोला, तुम वो नहीं हो, जिसको मैंने पसंद किया था..... बोलो कौन हो तुम।
जी..... मैं.... मैं सच कह रही हूं मैं मालती ही हूं.....
मालती बोली।
इसका मतलब, तुम्हारे घर वालों ने मुझ से धोखा किया है...... मुझे किसी और लड़की को दिखा कर .... तुम्हे मेरे मत्थे मढ दिया है..... ये सरासर धोखा है मेरे साथ.... मैं कभी तुमको अपनी पत्नी स्वीकार नहीं करूंगा.... इतना कह कर रमेश पैर पटकता हुआ दरवाजा खोल कर कमरे से बाहर निकल गया।
और मालती उसके पीछे पीछे धम्म से फर्श पर जड़वत बैठ गई।
जिसका उसे डर था आखिर वही हुआ.....
क्रमश:
आभार – नवीन पहल – २२.०५.२०२२ 🌹💐🙏🏻👍
अगले भाग में– क्या होगा मालती का, क्या रमेश उसे स्वीकारेगा या नहीं, जानने के लिए पढ़िएगा जरूर
# नॉन स्टॉप 2
Seema Priyadarshini sahay
23-May-2022 08:52 AM
बेहतरीन भाग👌👌
Reply
Gunjan Kamal
23-May-2022 12:58 AM
शानदार भाग
Reply
Zakirhusain Abbas Chougule
22-May-2022 07:51 PM
Nice
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